- जिस युग में हमने जन्म लिया, वह युग ही सबसे बड़ा है। ओहो! कितना काम पड़ा है?।।
- जो बालक कह तोतरी बाता। सुनहि मुदित मन पितु अरू माता।।
- परिवर्तन अब आवश्यक है, सेवा हित मिल कर आओ। क्रांति युग में करो समझ कर, जीवन धन्य बनाओ।
- जन्म दिया किया पालन-पोषण, चलना हमें सिखाया। धन्य वही मानव है जिसने, जीवन सफल बनाया।
- पिता वृद्ध हो जाये कभी तो, पड़ जाये भोजन के लाले। संतानें विपरीत हो जाये, बड़े प्यार से जिनको पाले।।
- पिता वृद्ध लाचार अगर तो, स्वार्थ में बेटे पड़ जाए। नहीं पिता को पेन्शन मिलती, ऐसा पिता कहाँ पर जाए।।
- पालन पोषण हो बेटी का, द्वार गगन का खोलेगी। पीहर या सुसराल पक्ष में, नाम उजागर कर देगी।।
- जो बहुए बैठी पीहर में, नर्क समान हुआ हैं जीवन। करते क्यूं दानवता उस पर, क्यूं रखते है बहू से अनबन।।
- समझे सास बहू को बेटी, बहू सास को समझे माँ सम। प्रेम प्यार का बरसे सावन, हो जाये सबका जीवन धन।।
- अगर बहू हो जाय घमण्डी, तो उसका घर बिखर जायेगा। नम्र प्रेम करूणामय हो तो, वही स्वर्ग घर कहलायेगा।।
- जीवन में शांति और सुख चाहते है, तो अपनी बुद्धि को विकारों से मुक्त करें।
- मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है उसकी अपनी नकारात्मक सोच। यह सोच ही है जो किसी को मित्र अथवा शत्रु बनाती है।
- मातृभूमि, समाज तथा परिवार की सेवा प्रत्येक व्यक्ति का दायित्व है और धर्म भी।
- वह, जो देवताओं के लिए भी दुर्लभ है, परन्तुु मनुष्यों के लिए सहज सुलभ, वह है माँ का प्यार।
- भगवान ने खुद न आकर अपने दूत भेजे, माता-पिता के रुप में।
- सच्चे मन से माता-पिता की सेवा कर लो, सारे तीर्थ उन्हीं में समाहित हैं।
- सुख और आनन्द में इतना सा अन्तर है कि सुख में दुख दब जाता है और दुःख के मिट जाने पर आनन्द आता है।
- सुमति और कुमति में केवल एक अक्षर का अन्तर है। सुमति आपको संसार के सारे सुख दिला देगी और कुमति से आप उन सभी को गँवा देंगे।
- अपने अभिमान का त्याग करें तथा सेवा धर्म को अपने अंतःकरण में स्थापित करें। यही आत्म कल्याण का मार्ग है।
- निष्काम भाव से जीने का प्रयत्न करें। कामनाएँ व्यक्ति की दृष्टी क्षीण कर उसे सन्मार्ग से भटका देती है।
- सदा कृतज्ञता का भाव रखें। जो आपकी सहायता करें, उन्हें धन्यवाद दें यथा संभव उनकी भी सहायता का प्रयास करें।
- प्रभु की बनाई वस्तुएँ, ‘जड़’ अथवा ‘चेतन’ उन्हें सम्मान दीजिये। सम्मान देना उच्च कोटी का गुण है।
- ये देह ही देवालय है और सभी देव इसमें विराजित हैं। ध्यान को जाग्रत कीजिये और उस परम् तत्व से आपका साक्षात्कार अपने भीतर ही हो जाएगा।
- संसार के प्रत्येक जीव में परमात्मा का निवास है, अतः सभी जीवों के प्रति सम दृष्टि रखें।
- कार्य करने से पूर्व गहन चिन्तन, विचार करें, क्योंकि उसमें आप अपना वो अमूल्य ‘समय’ लगा रहे हैं, जो वापस नहीं आएगा।
- शिक्षा व्यवहारिक होनी चाहिये-केवल किताबी नहीं,तभी वह व्यक्ति के जीवन की सुदृढ़ नींव तैयार कर पाती है।
- ‘‘धैर्य’’ वीरों का गुण है। यह व्यक्ति को क्षणिक आवेश की धारा में बहकर स्वयं का तथा दूसरों का अनिष्ट करने से बचाता है।
- ‘‘धन्यवाद’’ बहुत प्रभावशाली शब्द है, मुस्कुराहट के साथ इसका दिल खोलकर प्रयोग करें।इससे आप सीधा व्यक्ति के दिल में जगह बनाते हैं।
- अगर जिद पक्की हो और श्रद्धा सच्ची तो भक्त की मनोकामना पूर्ण करने भगवान भी धरा पर उतर आते है।
- क्या आपने प्रभु को देखा है, मेनें देखा है, मेरे घर में ही रहते है, मेरे माता-पिता के रुप में।
- जीवन में रिष्तों का आनंद उनको आत्मीयता और जिन्दादीली से जीने में है। यह केवल सोचे नहीं अनुभव करके देखें।
- कभी किसी भुखे व्यक्ति को भोजन करवाकर देखिये, मन प्रसन्न हो जाऐगा और आत्मा तृप्त।
- संसार में चाहे धर्म कोई भी हो सबकी मुल बात यही है कि सच्ची मानवता जीव मात्र के प्रति दया करुणा और सेवा भाव है।
- गर्व और खुशी महसूस करें की हम इस भारत देष के नागरिक है।
- व्यसन करों तो प्रभु भक्ति का, शुद्ध आचरण का, सेवा-मानवता का। भीतर से खुशी मिलेगी और बाहर से सम्मान।
- मानवता का जाति, धर्म, स्वार्थ, ऊँच-नीच के द्वारा बांटने की बजाय वसुधैव कुटुम्बकम के सिद्धांत पर चलें, यही विश्व कल्याण का आधार है।
- एक ऐसी चीज़... जीसे जितना बाटेंगे, उससी दुगुनी आपको वापस मिलेग वो है आपकी मुस्कुराहट।
- क्षमा एक ऐसी औषधि है जो बड़े से बड़ा घाव भर सकती है। क्षमा मांग लिजिये और क्षमा कर दिजिये।
- सुख कहता है धैर्य रखो, दुख कहता है त्याग करो, फिर देखो कोई कैसे तुम्हें अपनी राहों से डीगा सकता है।
- सदा प्रसन्न रहें, सकारात्मक सोचें, सबका सम्मान करें। आसमान सी उँची प्रगती करें और खुद को अपनी जड़ों से जोड़े रखें।
- परमात्मा की शक्ति कण-कण मे व्याप्त है, उन पर विश्वास करें। संतो की वाणी का अनुसरण करें।
- स्वार्थ लोभ का त्याग करें, ह्दय में करुणा रखें। अपने रोम-रोम में मानवता के भाव जगाएँ।
- नश्वर संसार में सद्गुरु एक प्रकाश पुंज है। जो घोर अंधकार में भी जीव का मार्ग प्रशस्त करते है।
- उत्साह ही जीवन की सबसी बड़ी शक्ति है। व्यक्ति केवल उत्साह मात्र से ही हर बाधा को पार कर लेता है।
- सम्पुर्ण विश्व के मंगल के भाव हमारे मन में जगें। हम धर्म को धारण करें और अपने धर्म का पालन करें।
- उठे और पुरुषार्थ करें। भाग्य भी उन्हीं का साथ देता है जो पुरुषार्थ करते है।
- अपने मन को निर्मल और स्वभाव को विनम्र बनावें। जो विनम्र है वो सर्वत्र सम्मान पाते है।
- अपनी व्याकुलता का त्याग करें और चित्त को एकाग्र करें। एकाग्रता से आपको सभी प्रश्नों के उत्तर मिल जाऐगे।
- अपने विवेक को जागृत करें। सद्विवेक से ज्ञान तथा सद्ज्ञान से व्यक्ति को सम्मान प्राप्त होता है।
- अपने अभिमान का त्याग करें तथा सेवा धर्म को अपने अंतःकरण में स्थापित करें। यही आत्म कल्याण का मार्ग है।
- निष्काम भाव से जीने का प्रयत्न करें। कामनाएँ व्यक्ति की दृष्टी क्षीण कर उसे सन्मार्ग से भटका देती है।
- सदा कृतज्ञता का भाव रखें। जो आपकी सहायता करें, उन्हें धन्यवाद दें यथा संभव उनकी भी सहायता का प्रयास करें।
- प्रभु की बनाई वस्तुएँ, ‘जड़’ अथवा ‘चेतन’ उन्हें सम्मान दीजिये। सम्मान देना उच्च कोटी का गुण है।
- ये देह ही देवालय है और सभी देव इसमें विराजित हैं। ध्यान को जाग्रत कीजिये और उस परम् तत्व से आपका साक्षात्कार अपने भीतर ही हो जाएगा।
- संसार के प्रत्येक जीव में परमात्मा का निवास है, अतः सभी जीवों के प्रति सम दृष्टि रखें।
- कार्य करने से पूर्व गहन चिन्तन, विचार करें, क्योंकि उसमें आप अपना वो अमूल्य ‘समय’ लगा रहे हैं, जो वापस नहीं आएगा।
- शिक्षा व्यवहारिक होनी चाहिये-केवल किताबी नहीं,तभी वह व्यक्ति के जीवन की सुदृढ़ नींव तैयार कर पाती है।
- ‘‘धैर्य’’ वीरों का गुण है। यह व्यक्ति को क्षणिक आवेश की धारा में बहकर स्वयं का तथा दूसरों का अनिष्ट करने से बचाता है।
- ‘‘धन्यवाद’’ बहुत प्रभावशाली शब्द है, मुस्कुराहट के साथ इसका दिल खोलकर प्रयोग करें।इससे आप सीधा व्यक्ति के दिल में जगह बनाते हैं।
- अगर जिद पक्की हो और श्रद्धा सच्ची तो भक्त की मनोकामना पूर्ण करने भगवान भी धरा पर उतर आते है।
- क्या आपने प्रभु को देखा है, मेनें देखा है, मेरे घर में ही रहते है, मेरे माता-पिता के रुप में।
- जीवन में रिष्तों का आनंद उनको आत्मीयता और जिन्दादीली से जीने में है। यह केवल सोचे नहीं अनुभव करके देखें।
- कभी किसी भुखे व्यक्ति को भोजन करवाकर देखिये, मन प्रसन्न हो जाऐगा और आत्मा तृप्त।
- संसार में चाहे धर्म कोई भी हो सबकी मुल बात यही है कि सच्ची मानवता जीव मात्र के प्रति दया करुणा और सेवा भाव है।
- गर्व और खुषी महसूस करें की हम इस भारत देष के नागरिक है।
- व्यसन करों तो प्रभु भक्ति का, षुद्ध आचरण का, सेवा-मानवता का। भीतर से खुषी मिलेगी और बाहर से सम्मान।
- मानवता का जाति, धर्म, स्वार्थ, ऊँच-नीच के द्वारा बांटने की बजाय वसुधैव कुटुम्बकम के सिद्धांत पर चलें, यही विष्व कल्याण का आधार है।
- एक ऐसी चीज़... जीसे जितना बाटेंगे, उससी दुगुनी आपको वापस मिलेग वो है आपकी मुस्कुराहट।
- क्षमा एक ऐसी औशधि है जो बड़े से बड़ा घाव भर सकती है। क्षमा मांग लिजिये और क्षमा कर दिजिये।
- सुख कहता है धैर्य रखो, दुख कहता है त्याग करो, फिर देखो कोई कैसे तुम्हें अपनी राहों से डीगा सकता है।
- विनम्रता आपके स्वभाव का हिस्सा हो, सभी जीवों के प्रति प्रेम और सद्भाव आपकी पहचान बने। संसार के सभी ग्रंथों का सार इसी में है।
- हर बड़ा निर्माण चाहे वो इंसान का चरित्र हो, कोई महल या साम्राज्य। उनकी नींव में सबसे महत्वपूर्ण वस्तु है ‘‘बनाने वाले की बड़ी सोच’’
- सबको अपना मान लेने से प्रियता आती है, अगर अपना कुछ न माने तो स्वाधीनता आती है, अगर किसी न किसी नाते सभी को अपना मान ले तो उदारता आती है।
- अपने अन्दर आत्मविश्वास को जगाने का सबसे आसान तरीका है- ‘‘ सत्य बोलना ’’
- अहंकार ने किसी को नहीं छोड़ा, चाहे वो देवता हो या दानव या ऋषि मुनि। फिर आप और हम तो मनुष्य मात्र हैं। ‘‘त्याग दिजिये अहंकार’’
- जगत के कल्याण के लिए अवतारी होने की आवश्यकता नहीं है। आप किसी ‘‘गिरते को संभालकर’’ ही शुरुआत कर दीजिये।
- परिवर्तन की सार्थकता उसके सात्विक होने में है, सुखद होने में है - चाहे वो समाज के प्रति हो या स्वयं के प्रति।
- जो हौंसला नन्हीं सी चिड़िया को खुले आसमान में उड़ने की ताकत देता है, वो इंसान को किन बुलंदियों तक ले जा सकता है... जरा सोचिये।
- सनातन संस्कृति में मानवता का धर्म ब्रह्मांड की उत्पत्ति के काल से ही अस्तित्व में है।
- जहाँ-जहाँ संतों का सत्संग होता है, तथा सज्जन पुरूष जाते हैं, वहाँ विद्या मुस्कुरा उठती है, जैसे बसंत आ गया हो।
- अपने व्यवहार को शुद्ध रखिये और आचरण को सात्विक। क्योंकि आपसे छोटे आपको देखते भी हैं और सीखते भी है।
- दरवाजे पर खड़े दीन-हीन, भूखे को दुत्कारिये मत। उसकी भूख न सही... प्यास तो शांत कर ही सकते हैं आप।
- प्राणी मात्र की सच्ची सेवा करना प्रभु की पूजा करना ही है।
- कर्म में धर्म तथा धर्म में कर्म के संतुलन को जिस व्यक्ति ने साध लिया, उसका जीवन सफल है।